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भारत मे कम्युनिस्ट

जब भी कोई कम्यूनिस्ट दिखे वामपंथी दिखे कामरेड-कामरेड चिल्लाता हुआ दिखे तो उसको पूछो कि "भई ये वामपंथी में वाम का क्या अर्थ है ? कहाँ के बाईं ओर का रास्ता पकड़ लिए हो और ये कामरेड का मतलब क्या है हिन्दी तो नहीं लगता हिन्दी तो छोड़ो भारतीय भी नहीं लगता तो कौन सी भाषा का शब्द है ये और इसका हिन्दी क्या है हिन्दी या कोई भारतीय भाषा में वही शब्द इस्तेमाल करने में शर्म आती है क्या ? तो मतलब ये मान रहे हो ना कि कामरेड और वामपंथी मानसिक तौर पर विदेशी गुलाम हैं " और जब वो सामने वाला चिड़चिड़ा जाए तो उससे पूछो कि "क्या आप सेकुलर हो ?" "क्या आप अल्प-संख्यकों के साथ हो ?" उसका उत्तर definitely "हाँ" होगा तो सामने वाले को तरीके से झिड़क दो और पूछो कि "तुम पक्के से कम्यूनिस्ट ही हो ना ? communism के कान्सैप्ट पता हैं भी कि नहीं ? अच्छा बताओ जरा communism में धर्म की अवाधारना को लेकर क्या कहा गया है"
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CAA और NRC

नोटबंदी के समय का एक विडियो याद आ रहा है जिसमें एक मुस्लिम महिला मोदी को गालियां दे रही थी कि मुस्लिम महिलाएं जो कि पर्दे में रहती हैं अपने घरों में रहती हैं उन्हें सड़क पर ले आया मोदी ने बैंक-एटीएम में लाइन लगाने और भीड़ में खड़े होने को मजबूर कर दिया मोदी ने और आज वही मीडिया वाले दिखा रहे हैं कि देखिए कैसे मुस्लिम महिलाएं पूरे देश में सड़कों पर आ कर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं भाई किसने कहा है उनको ये तमाशा करने ? लोग NRC को लेकर रोना रो रहे हैं भाई अभी तो NRC आया ही नहीं जब आयेगा तब की तब सोचना अभी तो CAA आया है इसमें तो किसी ने आपकी नागरिकता नहीं छिना और क्या वाकई आपको ये लगता है कि सरकार 25 करोड़ लोगों को देश से बाहर निकाल देगी या 25 करोड़ लोगों को डिटेन्शन सेंटर में रखा जा सकता है ? ------- मुद्दा ये है कि विपक्षी दलों के पास सरकार को रोकने का कोई वाजिब तरीका है नहीं तो कभी स्टूडेंट तो कभी महिलाओं बच्चियों को आगे करके नपुंसकों की भांति सरकार पर हमला कर रहे हैं कुछ बिकाऊ मीडिया भी इसी में लगे हुए हैं इनका एक मात्र उद्देश्य है देश को अस्थिर करना और सरकार

कश्मीर और वर्तमान राजनीति

मोटा भाई और मोदी जी राजनीतिक हास्यास्पद पहलू यह है कि वो सभी राजनीतिक दल जो कश्मीर मुद्दे पर सरकार का विरोध कर रहे हैं वो यह भूल जा रहे हैं कि उन्हें चुनाव शेष भारत में ही लड़ना है ना कि कश्मीर में और वो इतने अंधे हो चुके हैं कि उन्हें यह भी नहीं दिख रहा कि कल तक घोर मोदी विरोधी रहे लोग भी कश्मीर मुद्दे पर खुलेआम खुशी जाहिर कर रहे हैं कल जब इन्हीं लोगों के सामने आप वोट मांगने आओगे तो क्या ये लोग आपके इस घिनौने पाकिस्तान प्रेम को भूल कर आपको वोट देंगे ? लोगों की आँखें पूरी तरह खुल चुकी हैं उन्हें आपका सच समझ आ गया है कल तक जिन्हें लग रहा था कि अनुच्छेद 370 पर भाजपा सिर्फ राजनीति करती आई है लेकिन करेगी कुछ नहीं उन सब ने भी आज देख लिया कि भाजपा ने अपनी कही बात पूरी करके दिख दिया है मोदी और शाह ने भरपूर तैयारी किया उस तैयारी में उन्हें भले कुछ समय लगा लेकिन अपना किया वादा उन्होंने निभा दिया और उनके विरोधी सिर्फ दोगलाई करते रह गए आज जब मौका है तब भी वो भारत के पक्ष में बोलने के बजाए भारत के विरोध में बोल रहे हैं ऐसे में कौन इतना बड़ा बेवक

J & K

 चित्र में: केसरिया: जम्मू संभाग...केंद्र सरकार के साथ नीला: लद्दाख संभाग...केंद्र सरकार के साथ हरा: कश्मीर संभाग...केंद्र सरकार से नाराज़ रंगहीन: पाकिस्तान(1947) एवं चीन(1962) द्वारा कब्जाए गए J&K के भाग

कबीर सिंह

शहीद कपूर की फिल्म कबीर सिंह को लेकर मीडिया में जिस प्रकार की खबरें आ रही हैं हालांकि मैंने फिल्म देखा नहीं और शहीद कपूर जैसे कलाकारों की फिल्में थिएटर तो क्या यूट्यूब पर मुफ्त में देखने के पहले भी सोचना पड़ता है खैर ! तो जिस तरह का कथानक है फिल्म का, जैसा कि बताया जा रहा है और जिस ढंग से फिल्म अब तक कमा चुकी है उससे तो यही समझ आता है कि हमारा समाज सड़ चुका है वैसे इसके पहले भी संजय दत्त पर बनी फिल्म की कमाई ने यह सिद्ध कर दिया कि भारतीय समाज किस हद तक मानसिक दिवालिएपन का शिकार हो चुका है खैर ! मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा कि यदि आप भी ऐसी फिल्मों के दर्शक हैं तो यकीन मानिए आपकी मानसिक अवस्था भी ठीक नहीं है कुछ दिन शांति से अपने परिवार वालों के साथ समय बिताएँ अच्छी किताबें पढ़ें सही-गलत पर विचार करना शुरू करें क्यूंकि आपका दिमाग अब कूड़ादान बन चुका है जिसे साफ करने की जरूरत है
इलाहाबाद के एक विधायक राजू पाल की अतीक अहमद के गुंडों ने हत्या की थी (सन 2005)। अतीक अहमद समाजवादी पार्टी से उस समय सांसद थे। उसके कुछ साल बाद राजू पाल की विधवा पूजा पाल बसपा के टिकट से अपने पति के हत्यारोपी अशरफ(अतीक अहमद के भाई) को हराकर विधायक बनी थीं। जनता ने इमोशनल होकर उनको थोक में वोट दिया था (सन 2007)। अब खबर ये आई है कि पूजा पाल फिलहाल उसी समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद का चुनाव लड़ रही हैं जिसके सांसद ने उसके पति की सरेआम हत्या करवाई थी (सन 2019)। जब पति के हत्यारों से हमारे राजनीतिज्ञ समझौता कर सकते हैं तो आप समझ लीजिए देश के साथ वो क्या करेंगे? सत्ता चीज ही ऐसी है जिसका चश्का एक बार लग जाये तो रिश्ते तक बेमानी हो जाते हैं... बाकी जनता का क्या है? उसके माथे पर तो कैपीटल C लिखा ही हुआ है।

सरकारी नौकरी

दरअसल अंग्रेजों के दौर से भारत में एक बहुत ही गलत प्रवृत्ति ने जन्म लिया और वो है नौकरी करना शान की बात है दरअसल अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को इस बुरी तरह बर्बाद कर दिया कि रोजगार के अधिकांश अवसर ही समाप्त हो गए दुर्भाग्य की बात यह है कि आज़ादी के बाद भी यह मनोरोग देश में बाकायदा बना रहा और बढ़ता ही चला गया और यही कारण है कि देश में बेरोजगारी बढ़ती चली गई सवा सौ करोड़ लोगों को दुनिया की कोई सरकार नौकरी नहीं दे सकती यह तो तय है और आबादी जितनी तेजी से बढ़ रही है उतनी तेजी से नई नौकरियों का सृजन करना भी असंभव सा है ऐसे में स्व-रोजगार, उद्यमिता को बढ़ावा देकर ही लोगों के लिए रोजगार के अवसर जुटाए जा सकते हैं ---- सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जब आपका प्रधानमंत्री सामने आ कर कहता है तो आपको वह कार्य करने में शर्म नहीं आती और आपको टोकने वालों का भी मुंह बंद होता है सीधे शब्दों में कहूँ तो अर्थव्यवस्था में वो जो सामाजिक जकड़न थी जो 70 सालों से चली आ रही थी उसे तोड़ने का प्रयास किया है मोदी ने