दरअसल अंग्रेजों के दौर से
भारत में
एक बहुत ही गलत प्रवृत्ति ने जन्म लिया
और वो है
नौकरी करना शान की बात है
दरअसल अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को इस बुरी तरह बर्बाद कर दिया
कि
रोजगार के अधिकांश अवसर ही समाप्त हो गए
दुर्भाग्य की बात यह है
कि
आज़ादी के बाद भी यह मनोरोग देश में बाकायदा बना रहा और बढ़ता ही चला गया
और यही कारण है कि देश में बेरोजगारी बढ़ती चली गई
सवा सौ करोड़ लोगों को दुनिया की कोई सरकार नौकरी नहीं दे सकती
यह तो तय है
और आबादी जितनी तेजी से बढ़ रही है
उतनी तेजी से नई नौकरियों का सृजन करना भी असंभव सा है
ऐसे में
स्व-रोजगार, उद्यमिता को बढ़ावा देकर ही
लोगों के लिए रोजगार के अवसर जुटाए जा सकते हैं
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सबसे महत्वपूर्ण यह है
कि
जब आपका प्रधानमंत्री सामने आ कर कहता है
तो आपको वह कार्य करने में शर्म नहीं आती
और आपको टोकने वालों का भी मुंह बंद होता है
सीधे शब्दों में कहूँ
तो
अर्थव्यवस्था में वो जो सामाजिक जकड़न थी जो 70 सालों से चली आ रही थी
उसे तोड़ने का प्रयास किया है मोदी ने
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