श्रीराम ऐसा क्या था उस इंसान में जिसके जाने के हजारों साल बाद भी उनके देश के लोग उन्हें याद करते है। अयोध्या में जन्मे इस महापुरुष को क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात सभी पुरुषों में सबसे उत्तम क्यों कहा जाता है ?क्यों सारी दुनिया इस इंसान के अयोध्या लौटने के दिन पर खुशियां मानती है?
श्रीराम की ज़िंदगी पूरी तरह त्याग,संघर्ष और बहुत निराशाओं से भरी थी फिर भी उन्हें अब तक का सबसे अच्छा राजा माना जाता है,और रामराज्य एक पैमाना बन गया किसी राज्य की खुशहाली को मापने का।
पर इन सभी उपलब्धियों ,प्यार और प्रसिद्धि के पीछे उस इन्सान को बहुत सी चीज़े त्यागनी पड़ी और बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा,जिसका सामना उन्होंने बहुत ही बहादुरी से किया जो उनकी बहादुरी को दर्शाता है।
श्रीराम अपने परम पूजनीय पिता दशरथ से बहुत ही ज्यादा प्रेम करते थे ,दशरथ भी अपने लाड़ले राम उतना ही प्यार करते थे।श्रीराम जब अयोध्या के युवराज थे और बस राजा बनने ही वाले थे तो बस अपने पिता को दिए वचन को पूरा करने के लिए वो 14 साल के वनवास पर चले गए।शास्त्रो और वेदों का ज्ञान था उन्हें सभी योद्धाओ में महान थे।दिखने में सबसे सुंदर थे पूरे भारतवर्ष की प्रजा उनका बहुत ही आदर और सम्मान करती थी,राजा बनने के लिये तैयार ही थे बस राज्याभिषेक की देरी थी परंतु फिर भी वो राजा नही बन पाए ,अपने पिता के दिये वचन के कारण बिना शिकायत के,बिना कुछ बोले श्रीराम चुपचाप वनवास काटने को जंगल चले गए।
श्रीराम की किस्मत देखो कि जिस पिता को सबसे ज्यादा प्यार करते थे उनकी मृत्यु के समय वह उन्ही के पास नही थे।उधर महाराज दशरथ भी अपने पुत्र श्रीराम का नाम पुकारते हुए ही चल बसे कभी सोचा है किस दुःख और दर्द से गुजरे होंगे श्रीराम।
श्रीराम चाहते तो अपने पिता के जाने के बाद वचन का पालन न करते हुए अयोध्या वापस लौट सकते थे लेकिन फिर भी उन्होंने वचन का पालन किया आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम जो थे।
जंगल में ही श्रीराम ने अपनी छोटी सी दुनिया बना ली और उसी में खुश रहने की पूरी कोशिश की।श्रीराम माता सीता से इतना प्यार और सम्मान करते थे कि सूर्पणखा की लाख कोशिशों के बाद भी श्रीराम ने उन्हें धोखा नही दिया जबकि उनके पिता दशरथ के खुद तीन पत्नियां थी वह चाहते तो सूर्पणखा को अपनी पत्नी बना सकते थे लेकिन भी उन्होंने ऐसा नही किया क्योंकि श्रीराम सिर्फ सीता मां से प्यार करते थे।
आप एक बार स्वयं सोचकर दिखिए आजकल ज्यादातर रिलेशनशिप प्रॉब्लम निष्ठा(लॉयल्टी) और विश्वास को ही लेकर होती है।रिलेशनशिप में एक दूसरे को धोखा देना तो आम घटना है।
इन सब के बावजूद श्रीराम भी श्रीराम हमेशा माता सीता के प्रति निष्ठावान रहे वह सीता माता से बहुत प्यार करते थे,
पर आजकल के कूल युवा इसे क्यों महत्व देंगे क्योंकि वो तो श्रीराम को गाली देने में लगे है ।
श्रीराम ,मां सीता और लक्ष्मण तीनो खुशी खुशी रह ही रहे थे कि इतने में रावण ने मां सीता का अपहरण कर लिया।श्रीराम ने बिना किसी धन के और खुद के राज्य के बिना श्रीराम ने अपनी वानर सेना खड़ी की,राम सेतु का निर्माण किया और वहां जाकर न चाहते हुए भी रावण का वध किया।
श्रीराम युद्ध नही चाहते थे पर लेकिन जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपना कर्म किया,युद्ध मे उतरे और युद्ध किया और जीता भी।
आज के समय मे कोई सैनिक अगर किसी को न चाहते हुए मारे तो उसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर हो जाता है और फिर पूरी ज़िंदगी उसका इलाज चलता है इसके बावजूद भी लोग उससे उभर नही पाते है।
पर श्रीराम ने इस ज़हर के घूट को भी पी लिया,लोग तो खुश थे और आज भी उन्हें पूजते है पर उनके ऊपर उस समय क्या बीती इसके बारे में कोई नही सोचता है।
आज कल के कूल लोग विशेषकर फेमिस्ट सब यह तो कहते है कि श्रीराम मिसोजनिस्ट(नारी द्वेषी)थे।सब यह तो बोलते है कि प्रजा के कहने पर श्रीराम ने सीता माता को वन में भेज दिया पर वह लोग कभी यह सोचते है कि मां सीता को वन भेजकर श्रीराम स्वयं कभी खुश थे?जाहिर सी बात है श्रीराम भी उतना दुखी थे जितना मां सीता।
श्रीराम चाहते तो दूसरी शादी कर सकते थे पर उन्होंने नही की क्योंकि वह मां सीता से बहुत प्यार करते थे |
अमीश त्रिपाठी अपनी किताब"इममोरटल इंडिया"में लिखते है कि हम सभी माता सीता के त्याग और पीड़ा के बारे में जानते है पर कभी श्रीराम के त्याग और पीड़ा को नही देखा"।
श्रीराम ने अपने पूरे जीवन मे राजधर्म का पालन किया उनके लिए उनकी प्रजा सबसे पहले थी बाकी बाते बाद में।
अगर आज के तथाकथित भारतीय लोकतंत्र के नेता श्रीराम के 10 प्रतिशत भी राजधर्म का पालन करे तो मुझे यकीन है कि सिर्फ इतिहास ही नही बल्कि भविष्य में भी रामराज्य वापस आएगा ।
अगर आपको ये लेख पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्त और परिवार वालो के साथ साझा जरूर करे।
धन्यवाद।
श्रीराम की ज़िंदगी पूरी तरह त्याग,संघर्ष और बहुत निराशाओं से भरी थी फिर भी उन्हें अब तक का सबसे अच्छा राजा माना जाता है,और रामराज्य एक पैमाना बन गया किसी राज्य की खुशहाली को मापने का।
पर इन सभी उपलब्धियों ,प्यार और प्रसिद्धि के पीछे उस इन्सान को बहुत सी चीज़े त्यागनी पड़ी और बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा,जिसका सामना उन्होंने बहुत ही बहादुरी से किया जो उनकी बहादुरी को दर्शाता है।
श्रीराम अपने परम पूजनीय पिता दशरथ से बहुत ही ज्यादा प्रेम करते थे ,दशरथ भी अपने लाड़ले राम उतना ही प्यार करते थे।श्रीराम जब अयोध्या के युवराज थे और बस राजा बनने ही वाले थे तो बस अपने पिता को दिए वचन को पूरा करने के लिए वो 14 साल के वनवास पर चले गए।शास्त्रो और वेदों का ज्ञान था उन्हें सभी योद्धाओ में महान थे।दिखने में सबसे सुंदर थे पूरे भारतवर्ष की प्रजा उनका बहुत ही आदर और सम्मान करती थी,राजा बनने के लिये तैयार ही थे बस राज्याभिषेक की देरी थी परंतु फिर भी वो राजा नही बन पाए ,अपने पिता के दिये वचन के कारण बिना शिकायत के,बिना कुछ बोले श्रीराम चुपचाप वनवास काटने को जंगल चले गए।
श्रीराम की किस्मत देखो कि जिस पिता को सबसे ज्यादा प्यार करते थे उनकी मृत्यु के समय वह उन्ही के पास नही थे।उधर महाराज दशरथ भी अपने पुत्र श्रीराम का नाम पुकारते हुए ही चल बसे कभी सोचा है किस दुःख और दर्द से गुजरे होंगे श्रीराम।
श्रीराम चाहते तो अपने पिता के जाने के बाद वचन का पालन न करते हुए अयोध्या वापस लौट सकते थे लेकिन फिर भी उन्होंने वचन का पालन किया आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम जो थे।
जंगल में ही श्रीराम ने अपनी छोटी सी दुनिया बना ली और उसी में खुश रहने की पूरी कोशिश की।श्रीराम माता सीता से इतना प्यार और सम्मान करते थे कि सूर्पणखा की लाख कोशिशों के बाद भी श्रीराम ने उन्हें धोखा नही दिया जबकि उनके पिता दशरथ के खुद तीन पत्नियां थी वह चाहते तो सूर्पणखा को अपनी पत्नी बना सकते थे लेकिन भी उन्होंने ऐसा नही किया क्योंकि श्रीराम सिर्फ सीता मां से प्यार करते थे।
आप एक बार स्वयं सोचकर दिखिए आजकल ज्यादातर रिलेशनशिप प्रॉब्लम निष्ठा(लॉयल्टी) और विश्वास को ही लेकर होती है।रिलेशनशिप में एक दूसरे को धोखा देना तो आम घटना है।
इन सब के बावजूद श्रीराम भी श्रीराम हमेशा माता सीता के प्रति निष्ठावान रहे वह सीता माता से बहुत प्यार करते थे,
पर आजकल के कूल युवा इसे क्यों महत्व देंगे क्योंकि वो तो श्रीराम को गाली देने में लगे है ।
श्रीराम ,मां सीता और लक्ष्मण तीनो खुशी खुशी रह ही रहे थे कि इतने में रावण ने मां सीता का अपहरण कर लिया।श्रीराम ने बिना किसी धन के और खुद के राज्य के बिना श्रीराम ने अपनी वानर सेना खड़ी की,राम सेतु का निर्माण किया और वहां जाकर न चाहते हुए भी रावण का वध किया।
श्रीराम युद्ध नही चाहते थे पर लेकिन जब जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपना कर्म किया,युद्ध मे उतरे और युद्ध किया और जीता भी।
आज के समय मे कोई सैनिक अगर किसी को न चाहते हुए मारे तो उसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर हो जाता है और फिर पूरी ज़िंदगी उसका इलाज चलता है इसके बावजूद भी लोग उससे उभर नही पाते है।
पर श्रीराम ने इस ज़हर के घूट को भी पी लिया,लोग तो खुश थे और आज भी उन्हें पूजते है पर उनके ऊपर उस समय क्या बीती इसके बारे में कोई नही सोचता है।
आज कल के कूल लोग विशेषकर फेमिस्ट सब यह तो कहते है कि श्रीराम मिसोजनिस्ट(नारी द्वेषी)थे।सब यह तो बोलते है कि प्रजा के कहने पर श्रीराम ने सीता माता को वन में भेज दिया पर वह लोग कभी यह सोचते है कि मां सीता को वन भेजकर श्रीराम स्वयं कभी खुश थे?जाहिर सी बात है श्रीराम भी उतना दुखी थे जितना मां सीता।
श्रीराम चाहते तो दूसरी शादी कर सकते थे पर उन्होंने नही की क्योंकि वह मां सीता से बहुत प्यार करते थे |
अमीश त्रिपाठी अपनी किताब"इममोरटल इंडिया"में लिखते है कि हम सभी माता सीता के त्याग और पीड़ा के बारे में जानते है पर कभी श्रीराम के त्याग और पीड़ा को नही देखा"।
श्रीराम ने अपने पूरे जीवन मे राजधर्म का पालन किया उनके लिए उनकी प्रजा सबसे पहले थी बाकी बाते बाद में।
अगर आज के तथाकथित भारतीय लोकतंत्र के नेता श्रीराम के 10 प्रतिशत भी राजधर्म का पालन करे तो मुझे यकीन है कि सिर्फ इतिहास ही नही बल्कि भविष्य में भी रामराज्य वापस आएगा ।
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धन्यवाद।
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