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5-7 साल पीछे लौट कर देखिए

कि

केजरीवाल ने

अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत

किन लोगों के विरोध में किया था

और

आज वो क्या कर रहा है

किन लोगों के साथ हाथ मिलाए खड़ा है

ना समर्थन देंगे ना समर्थन लेंगे

सब मिले हुए हैं जी

कितने डायलॉग मारे हैं उसने

और आज ?

भई 67/70 मिलने के बाद

भाड़ में गई जनता भाड़ में गए वादे भाड़ में गए सिद्धान्त
------

वैसे मुद्दा सिर्फ एक केजरीवाल का ही नहीं है

लगभग सभी राजनेताओं का यही हाल है

और इसके बाद भी जनता आँख मूँदे राजनेताओं की तरफ़दारी करती फिरती है
नारे लगाती है

क्यूंकि

ये लोकतन्त्र है !

सत्ता के लोभियों द्वारा... जनता के शोषण के लिए.... जनता को बेवकूफ़ बना कर चुनी हुई सरकार !!!

आओ लोकतन्त्र को और मजबूत करें

ताकि हम टैक्स भरें

और

ये नेता ऐश करें !!!

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