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भारत और आतंकवाद

भारत सरकार (फिर चाहे सत्ता में कोई भी हो) या तो खुद को धोखे में रखना चाहती है

या फिर देश की जनता को

आतंकवाद के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हल्ला करके कुछ हासिल नहीं होने वाला

कम से कम आप अपने दुश्मन का तो कुछ भी नुकसान नहीं ही कर सकते

क्यूंकि अंतर्राष्ट्रीय संबंध कभी भी दूसरे की आवश्यकता या समस्या पर निर्भर नहीं करते

बल्कि हर देश एक दूसरे देश से अपनी जरूरत के आधार पर संबंध रखता है

आपको क्या लगता है कि जो अमेरिका आज भारत के साथ खड़ा दिख रहा है क्या वाकई वो आतंकवाद के खिलाफ 'भारत के साथ' है या पाकिस्तान के खिलाफ है ?

या फिर रूस ?

या फिर दुनिया का कोई भी अन्य देश ?

तो फिर आतंकी मुद्दे पर ये कहा जाना कि हम दुनिया में अपने दुश्मन को अलग-थलग कर देंगे

ठीक वैसी ही बेवकूफी भरी बात है

जैसे स्वतन्त्रता आंदोलन की असफलताओं पर हमारे इतिहासकार लिखते हैं
कि
भले ही आंदोलन अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया लेकिन इसने दुनिया के सामने अँग्रेजी हुकूमत को बेनकाब कर दिया

और इसके लिए मेरा इतना ही कहना है
कि
बेवकूफी दिखाना बंद करो

दुनिया जानती थी कि अंग्रेज़ क्या थे आप नहीं जानते थे तो आप बेवकूफ थे

ठीक उसी प्रकार दुनिया जानती है कि आतंकवाद की समस्या क्या है और उसका समाधान क्या है
आप नहीं जानते तो आप मूर्ख हो

अमेरिका में हमला हुआ तो अमेरिका ने दुश्मन को घर में घुस कर मारा
इज़राइल वाले तो किसी को बोलते ही नहीं वो तो सीधा कहते हैं कि तुमने हमारा एक मारा तो बदले में हम तुम्हारा एक पूरा गाँव साफ कर देंगे

और एक हम हैं बेवकूफ़ों सरीखे दुनिया जहाँ में हाथ फैलाए फिरते रहते हैं

पुरुषार्थ दिखाइए भिखारी मत बनिए
हम अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों के रहम-ओ-करम पर नहीं जी रहे

हमारे सैनिक पर्याप्त सक्षम हैं

यदि वो फिदायीन हमला कर सकते हैं तो हम क्यूँ नहीं कर सकते ?

क्यूँ हम आत्मघाती दस्ते पाकिस्तान भेजकर उसे तहस नहस नहीं कर सकते ?

भारत की समस्या पाकिस्तान नहीं है ना ही आतंकवादी है
भारत की समस्या है यहाँ का लचर राजनीतिक ढांचा और निर्णय ले पाने की अक्षमता

आप आज तत्काल हमला नहीं कर सकते
यह सभी जानते हैं

लेकिन

आप कभी भी हमला नहीं करोगे
यह नपुंसकता है

हमारे यहाँ मुद्दे आते हैं हल्ला होता है फिर कुछ समय बात चुनाव आ जाते हैं आईपीएल आ जाता है कोई नई फिल्म आ जाती है कोई नया विवाद आ जाता है

और फिर सब भूल जाते हैं

और सरकार तो शायद सिर्फ भूलना ही चाहती है

हमारे यहाँ मुद्दों को लेकर कोई दूरगामी सोच नहीं होती कोई प्लानिंग नहीं होती
जो होता है वो सिर्फ जुबानी जंग
ऊंची-ऊंची बातें
बड़े-बड़े जुमले

लेकिन जमीन पर कुछ नहीं

आज समस्या आई तो लोगों का दिल-बहलाने के लिए बड़ी-बड़ी बात कर दी गई
बाद में पता चलता है कि वो व्यवहार में संभव नहीं
फिर कुछ दूसरा हल्ला कर बात को भुलवा दो

फिर अगली बार जब वही समस्या दूसरे रूप में आए
तो आरोप-प्रत्यारोप चालू कर दो

ऐसे राष्ट्र नहीं चलता

इस लचर राजनीतिक व्यवस्था ने देश को खोखला कर दिया है

जनता हर बार सब काम छोड़कर सड़क पर नहीं उतर सकती

अन्ना आंदोलन के समय जनता सड़क पर उतरी

क्या मिला ? धोखा !

आज फिर जनता सड़क पर आ गई है लोगों में गुस्सा है
इसी का नतीजा है
कि
सोश्ल मीडिया पर देश के खिलाफ बोलने वालों पर कार्यवाही हो रही है

कल को जनता अपने-अपने काम में लग जाएगी

और ये आस्तीन के सांप फिर से गंदगी फैलाना शुरू कर देंगे

लेकिन यदि आप समस्या का समाधान नहीं करेंगे

तो

एक दिन यही असंतोष बढ़ता हुआ पूरे देश में अराजकता पैदा कर देगा

बेहतर होगा

यदि सरकार देश के अंदर और बाहर छुपे दुश्मनों का स्थाई इलाज करने पर ध्यान दे

दलगत या स्वार्थ की राजनीति से परे

राष्ट्र की राजनीति पर ध्यान देने की जरूरत है

और अपनी समस्या सिर्फ और सिर्फ हम ही सुलझा सकते हैं

दूसरे सिर्फ हमारे मजे ले सकते हैं या फिर हमारी तकलीफ में हमारा इस्तेमाल ही कर सकते हैं

इसलिए

अंतर्राष्ट्रीय मंच की नौटंकी को समस्या के समाधान के तौर पर देखना और दिखाना बंद कर दीजिए

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